मितान : मित्रता की समृद्ध छत्तीसगढ़ी लोक परंपरा

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मित्रता वह शै है, जिसके आगे सारे रंग बेनूर हैं। मनुष्य को सारे रिश्ते जन्म के साथ मिल जाते हैं पर मित्रता का रिश्ता वह अर्जित करता है। यह प्राकृतिक भाव है, नियमों से परे। हर वह रिश्ता जिसमें मैत्री भाव है, अधिक मजबूत और स्थायी होता है। दुनिया इसी भाव से ही सुंदर बनी हुई है। इस सहज सुंदरता को अब बाजार ने नियंत्रित करना शुरू कर दिया है और फ्रेंडशिप डे का उत्सव हमारे सामने है। आज दुनिया हर अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे मनाती है।

फ्रेंडशिप डे की शुरुआत को लेकर दो कहानियां हैं। पहली ऐसी है कि 1935 में अमेरिकी सरकार ने एक आदमी की हत्या कर दी थी और इस वजह से उसके दोस्त ने आत्यहत्या कर ली थी। तभी से अमेरिकी सरकार ने इस दिन को उनके नाम करते हुए सेलिब्रेट करना शुरू कर दिया था। दूसरी कुछ यूं है कि 1930 में एक व्यापारी जोएस हॉल ने इस दिन की शुरूआत की थी। इसने 2 अगस्त को दोस्तों के नाम इस दिन को करते हुए कार्ड्स और गिफ्ट्स लेने देने की शुरुआत की और यह सेलिब्रेशन के रूप में शुरू हो गया। पर यह अंतरराष्ट्रीय स्तर में तब आया जब 30 जुलाई 1958 को यूनाईटेड नेशन्स में इसे दुनिया भर में मनाने के लिए प्रस्तावित किया। यह चलन में रहा और फिर लंबे समय बाद 27 अप्रैल 2011 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 30 जुलाई को हर साल वर्ल्ड फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाने का ऐलान किया और आज यह सूचना क्रांति और संचार माध्यमों के कारण अत्यंत लोकप्रिय दिवस के रूप में स्थापित है।

मित्रता दिवस के इस अधुनातन स्वरूप से परे हमारे यहाँ छत्तीसगढ़ में आधुनिक फ्रेंडशिप डे की जड़ें अत्यंत प्राचीन हैं। यह मितान के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी में मितान का अर्थ मित्र होता है। मितान स्त्री-पुरुष को आपस में छोड़कर कोई भी, कभी भी, किसी से भी मितान बद सकता है। बदना से अर्थ है, तय करना। यह अनुबंध है। दोनों मित्रों का दो जिस्म, एक जान। दोनों के परिवार भी एक हो जाते हैं, सुख-दुःख सब में बराबर के भागीदार। मितान यानी हर सुख-दुख का साथी । किसी के यहां ब्याह हो या मुंडन, मितान हर क़दम पर एक दूसरे के साथ होंगे। मितान पुरुष मित्र होते हैं। और जब महिलाएं या लड़कियां मितान बदती हैं तो वे मितानिन कहलाती हैं। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का नाम ही मितानिन नाम के इसी प्रभाव के कारण रखा गया है। इसके अलावा राजस्व विभाग यहां ‘किसान मितान’ के नाम से किसानों की सहायता के लिए गठित है। मितान की यह परंपरा यहां जाने कितनी सदियों से चले आ रहे लोकसृजित सामाजिकता का, अपनत्व का, सहयोग भाव का आधार बना हुआ है।

तस्वीर बीबीसी हिंदी से साभार

छत्तीसगढ़ में इस मित्रता के कई रूप हैं जो इस प्रकार हैं-
गंगाजल – गंगाजल को पवित्रता का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। दो लोग जब मितान बदते हैं तो गंगाजल का आदान प्रदान कर समाज के सामने मितान बनते हैं।
भोजली – भोजली अर्थात भू में जल हो। यह उत्तर भारत मे कजलइयाँ कहलाता है। यह मुख्यतः गेंहूँ के अंकुरित पौधे होते हैं जिसे सावन की शुक्ल अष्टमी को एक दूसरे को कानों में खोंसकर मितान बदा जाता है। छत्तीसगढ़ में बहुप्रचलित अभिवादन वाक्य ‘सीताराम भोजली’ इसी से बना है
जंवारा – इस तरह का मितान नवरात्रि के समय बदा जाता है क्योंकि उसी समय दुर्गोत्सव का जंवारा बोया जाता है। जंवारा अर्थात गेंहूँ के अंकुरित पौधे। इन्हीं पौधों का आदान प्रदान कर जंवारा मितान बदा जाता है। जंवारा शब्द छत्तीसगढ़ी गीतों में ‘ए मोर/हाय मोर जंवारा’ के रूप में हम ज्यादातर सुनते हैं।
महाप्रसाद – छत्तीसगढ़ में महाप्रसाद जगन्नाथपुरी के प्रसाद को कहा जाता है। यह अन्य किसी तीर्थ स्थल का  प्रसाद भी हो सकता है। मितान के इस प्रकार में इस प्रसाद का आदान प्रदान कर मितान बदा जाता है। छत्तीसगढ़ में यह बहुप्रचलित मितान बदने की परंपरा है।
गजामूंग – छत्तीसगढ़ पुरी के जगन्नाथ भगवान के प्रभाव से  आप्लावित है। जब रथयात्रा होती है तो उसका मुख्य प्रसाद गजामूंग होता है। मूंग के गजा अर्थात् अंकुरण को प्रसाद बनाकर मित्रता की शुरुआत की जाती है। इस तरह का मितान रथयात्रा के अवसर पर बदा जाता है।
तुलसीदल – यह तुलसी विवाह के दिन किया जाता है। इसमें तुलसी की पूजा की जाती है और तुलसी के पत्ते एक दूसरे को खिलाकर मितान या मितानिन बदा जाता है। यह मितानिन लोगों  में अधिक प्रयोग होता है।
गोदना – गोदना अर्थात टैटू। जिन्हें मितान बदना है, वे अपने अंग में, खासकर हाथ मे एक दूसरे का नाम गोदना द्वारा लिखवाकर मितान बनाया जाता है। यह जीवनभर मित्रता का एक स्थायी आधार बनता है।
दोनापान – इस परंपरा में एक दूसरे को तेंदू या सरई की दोनापत्ती व फूल देकर मितान बदा जाता है। दोनापान शब्द छत्तीसगढ़ी लोकगीतों के सिरमौर ददरिया में ज्यादातर प्रयोग होता है।
सैनांव – इनमे जब दो व्यक्तियों का नाम एक ही जैसा होता है तो तो उन दोनों के द्वारा बदे गए मितान परंपरा को सैनांव मितान कहा जाता है। यह शब्द छत्तीसगढ़ में इतना प्रभावी है कि आज भी यहाँ एक ही नाम वाले आपस मे एक दूसरे को सैनांव ही कहकर पुकारते हैं चाहे उन्होंने मितान बदा हो या नही।

यहाँ लोक में उपर्युक्त तमाम नामकरण आसानी से सुनने मिल जाते हैं। इसका कारण यह है कि जिससे मितान बदा गया है, उसका नाम भूले से भी नहीं लिया जाता बल्कि उसे महाप्रसाद, तुलसीदल, भोजली, दौनापान, गंगाजल आदि जिस नाम से मित्रता स्थापित हुई है, उस नाम से ही पुकारा जाता है या राम राम, जोहार, सीताराम से पुकारा जाता है। कई बार झगड़ों को निपटाने आपस मे भी यह अनुबंध कर लिया जाता है और झगड़ा खत्म हो जाता है। इसके सम्मान की भावना इतनी प्रबल है कि बच्चों में बदे हुए मितान खेलते कूदते समय स्वाभवतः झगड़ते हैं, तब भी मित्र का नाम मुंह से नहीं निकलता बल्कि यह ‘गंगाजल’ या ‘भोजली’ कहकर झगड़ते हैं।

बताया जाता है कि सरगुजा राजपरिवार के यू एस सिंहदेव और सरगुजा के राज्यसभा सदस्य रहे प्रवीण प्रजापति ने भी एक दूसरे को सखी बनाया था जो उनके निधन उपरांत भी उनका परिवार इस रिश्ते को आज भी निभा रहा है। इसी तरह लाला जगदलपुरी ने लिखा है कि 1910 के महान बूमकाल विद्रोह के साथी गुंडाधूर और लाल कालेन्द्र सिंह आपस मे गजामूंग मितान थे। एक बार मितान या मितानिन बन जाने के बाद मित्र को नाम ले कर संबोधित करने की परंपरा नहीं है । जब भी मित्र को संबोधित करना होगा तो केवल मितान कह कर या जिस परम्परा के तहत मितान बदा गया है, उसे ही संबोधन के लिए इस्तेमाल किया जाता है ।

मितान छत्तीसगढ़ की एक ऐसी प्रचलित परंपरा है जिनमें सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि दो भिन्न भिन्न परिवारों का रिश्ता पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए जुड़ जाता है। यह छत्तीसगढ़ की विशिष्ट सांस्कृतिक परम्परा है जो अब वैश्वीकरण के दौर में विलुप्ति के कगार पर है। इस परंपरा में कोई तमाशा या दिखावा नहीं है। यह सहज रूप से समाज में स्थापित है। छीजते जाते समय में लोक की यह शिक्षा अनुकरणीय है।

(लेखक ,पीयूष कुमार , बागबाहरा, छत्तीसगढ़ में सहायक प्राध्यापक (हिंदी) हैं ।)

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