बिहार लेनिन जगदेव बाबू कुशवाहा जी को शहादत दिवस पर याद किया गया ।

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सामाजिक मुद्दो के ऊपर बुलंद आवाज रखने वाली जनहित अभियान इस महान विभूति को शत शत नमन करता है ।

इसके संयोजक श्री राज नारायण जी अपनी भावनाओ को समाज के साथ साझा  करते हुए कहते है कि

बिहार लेनिन जगदेव प्रसाद 1960 के दशक में बिहार के पिछड़े समाज के बड़े नेता थे उन्होंने सामंती व्यवस्था को खुली चुनौती दी थी।

सामंती व्यवस्था पर सीधा हमला करते हुए उन्होंने कहा था
“गोरी कलाइयाँ कादो में, एहि सावन भादो में”…

जब ये नारा बिहार में गुंजने लगी तभी से ये सवर्णो के आँखों में चुभ गए थे।

5 सितम्बर 1974 को कुर्था में जगदेव बाबू हजारों की संख्या में ‘शोषित समाज’ का नेतृत्व करते हुए अपने कारवाँ को लेकर चल रहे थे।कुर्था में तैनात किए गए डी.एस.पी.ने षड्यंत्र के तहत सत्याग्रहियों को रोका। जगदेव बाबू ने इसका विरोध किया और स्वर्णों द्वारा पूर्व रचित षड्यंत्र के जाल में फंस गए।पुलिस ने सत्याग्रहियों पर हमला बोल दिया।जगदेव बाबू अपना क्रांतिकारी भाषण जरी रखा।पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी।गोली लगते ही जगदेव बाबू जमीन पर गिर पड़े।घायलावस्था में पुलिस उन्हें अस्पताल नहीं ले जाकर थाना ले गयी।पानी-पानी चिल्लाते हुए जगदेव बाबू ने थाने में ही अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

आज अमर शहीद जगदेव बाबू की पुण्यतिथि है उन्हें याद करते हुए शत शत नमन ।

सामाजिक कार्यकर्ता  वीरेंद्र  कुशवाहा जी जगदेव बाबू के बारे मे बताते है कि

जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को बोध गया के समीप कुर्था प्रखण्ड के कुरहारी ग्राम में अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिता प्रयाग नारायण पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली अनपढ़ थीं। अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की। हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण जगदेव जी की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील तथा जुझारू रही तथा बचपन से ही विद्रोही स्वाभाव’ के थे।

जब वे शिक्षा हेतु घर से बाहर रह रहे थे, उनके पिता अस्वस्थ रहने लगे। जगदेव जी की माँ धार्मिक स्वाभाव की थी। जगदेव जी ने तमाम घरेलू झंझावतों के बीच उच्च शिक्षा ग्रहण किया। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक उत्तीर्ण किया। वही उनका परिचय चन्द्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ। चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया। अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हुए। इसी बीच वे ‘शोसलिस्ट पार्टी’ से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र ‘जनता’ का संपादन भी किया। एक संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी। 1955 में हैदराबाद जाकर अंग्रेजी साप्ताहिक ‘सिटिजेन’ तथा हिन्दी साप्ताहिक ‘उदय’ का संपादन आरभ किया। प्रकाशक से भी मन-मुटाव हुआ लेकिन जगदेव बाबू ने अपने सिद्धान्तों से कभी समझौता नहीं किया। संपादक पद से त्यागपत्र देकर पटना वापस लौट आये और समाजवादियों के साथ आन्दोलन शुरू किया।
बिहार में उस समय समाजवादी आन्दोलन की बयार थी, लेकिन जे.पी. तथा लोहिया के बीच सद्धान्तिक मतभेद था। जब जे. पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया और समाजवादी विचारधारा का देशीकरण करके इसको घर-घर पहुंचा दिया।

जगदेव बाबू ने 1967 के विधानसभा चुनाव में संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, 1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था) के उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की। उनके अथक प्रयासों से स्वतंत्र बिहार के इतिहास में पहली बार संविद सरकार (Coalition Government) बनी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया। जगदेव बाबू तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझ-बूझ से पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ, लेकिन पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले लोहिया से अनबन हुयी और ‘कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला’ की स्थिति देखकर संसोपा छोड़कर 25 अगस्त 1967 को ‘शोषित दल’ नाम से नयी पार्टी बनाई। उस समय अपने भाषण में उन्होने कहा था-
जिस लड़ाई की बुनियाद आज मै डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी। चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे। जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी।”

जगदेव बाबू एक महान राजनीतिक दूरदर्शी थे, वे हमेशा शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा किसी को महत्त्व नहीं दिया। मार्च 1970 में जगदेव बाबू के दल के समर्थन से दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने।बिहार में राजनीति का प्रजातंत्रीकरण को स्थाई रूप देने के लिए उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक क्रान्ति की आवश्यकता महसूस किया। वे रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित ‘अर्जक संघ’ (स्थापना 1 जून, 1968) में शामिल हुए। 7 अगस्त 1972 को शोषित दल तथा रामस्वरूप वर्मा जी की पार्टी ‘समाज दल’ का एकीकरण हुआ और ‘शोषित समाज दल’ नमक नयी पार्टी का गठन किया गया। एक दार्शनिक तथा एक क्रांतिकारी के संगम से पार्टी में नयी उर्जा का संचार हुआ। जगदेव बाबू पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में जगह-जगह तूफानी दौरा आरम्भ किया। वे नए-नए तथा जनवादी नारे गढ़ने में निपुण थे. सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे, जहानाबाद की सभा में उन्होंने कहा था-

दस का शासन नब्बे पर,
नहीं चलेगा, नहीं चलेगा ।
सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है,
धन-धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है।

इसी समय बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जे.पी. के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा-दशा का सूत्रपात हुआ। मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं की तथा सरकार पर भी दबाव डाला गया लेकिन भ्रष्ट प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, जिससे 5 सितम्बर 1974 से राज्य-व्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनी। 5 सितम्बर 1974 को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में शोषित समाज का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे। कुर्था में तैनात डी.एस.पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए। सत्याग्रहियों पर पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया। जगदेव बाबू चट्टान की तरह जमें रहे और और अपना क्रांतिकारी भाषण जरी रखा, निर्दयी पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी। गोली सीधे उनके गर्दन में जा लगी, वे गिर पड़े। पुलिस घायलावस्था में उन्हें पुलिस स्टेशन ले गयी। पानी-पानी चिल्लाते हुए जगदेव बाबू ने थाने में ही अंतिम सांसे ली।

उनके भाषण का महत्वपूर्ण अंश..
“जिस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूं वह लंबी और कठिन होगी क्योंकि मैं एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने जाने वाले लोगों की कमी नहीं रहेगी परंतु इसकी धारा कभी रुकेगी नहीं”

“इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे और तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे, जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी”

जन्मजात क्रांतिकारी, भारत में शोषितों की क्रांति के जनक, अर्जक संस्कृति और साहित्य के पैरोकार, मंडल कमीशन के प्रेरणा स्रोत, सर्वहारा के महानायक, अमर शहीद, भारतीय लेनिन जगदेव प्रसाद कुशवाहा जी के शहादत दिवस पर मैं उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ ।

 

Jayant Jigyasu , पूर्व छात्र ,JNU लिखते है कि आज बिहार लेनिन बाबू जगदेव की बरसी है। उन्हें याद करने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है कि आज हर ओर दिख रहे जुल्मत के दौर में समाजवादी मूल्यों पर चलने वाले हम नौजवान उन्हें अपने बीच ही पाते हैं।

जगदेव बाबू ने कहा था, “जिस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूं, वह लम्बी और कठिन होगी। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे। जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी”।

ज़ाहिर सी बात है कि जगदेव बाबू मारे गए, लालू जी जेल में हैं, और हम तीसरी पीढ़ी के लोग संघर्षरत हैं, ज़माना बदलेगा।

 

वो कितना सच कहते हैं,

दस प्रतिशत शोषकों के जुल्म से छुटकारा दिलाकर नब्बे प्रतिशत शोषितों को नौकरशाही और जमीनी दौलत पर अधिकार दिलाना ही सामाजिक न्याय है।”

उनके इंकलाबी नारों को कौन भूल सकता है:

“सौ में नब्बे शोषित हैं, शोषितों ने ललकारा है
धन-धरती और राजपाट पे नब्बे भाग हमारा है।”

बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि जिस रामाश्रय सिंह ने बिहार लेनिन आदरणीय जगदेव प्रसाद कुशवाहा जी को लाठियों से पीट-पीटके मार दिया, सड़क पर घसीटा, प्यास लगने पर मुंह पर पेशाब कर दिया था, उसी गुंडे रामाश्रय सिंह को नीतीश जी ने संसदीय कार्यमंत्री और जल संसाधन मंत्री बना दिया था। इतना ही नहीं, नीतीश जी ने रामाश्रय सिंह की प्रतिमा भी लगवा दी। ये कोयरी-कुर्मी के कैसे हितैषी नेता हैं भाई?

इसलिए, सत्ता में समाज की पीठ में छूरा भोंकने वाले भले बैठ जाएँ, शोषकों के ख़िलाफ़ शोषितों की लड़ाई जारी रहेगी।

अमर शहीद जगदेव बाबू को शत-शत नमन!

 

रिहाई मंच से श्री राजीव यादव जी बहुजनों के नायको को शहादत दिवस पर याद करते हुए समाज के लिए एक नारा बुलंद करते है ।

हमारे नायक  , हमारे विरासत 

हमारा एजेंडा , हमारी दावेदारी 

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