डिजिटल इंडिया के बहाने संविधान व संवैधानिक अधिकार छीनने का नया तरीका है : अरविंद यादव

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डिजिटल इंडिया बनाया जा रहा है व संविधान या संवैधानिक अधिकार छीनने का नया तरीका है
लेखक — अरविन्द यादव

कोरोना संकट का काल चल रहा है, बहुत कुछ बदला है| बदलाव आने भी चाहिए यदि मानव जीवन को सुरक्षित रखना है | येसे में डिजिटल इण्डिया हमारी जरुरत बन गई है| हम बैलगाड़ी युग से निकल कर कम्पुटर युग में आ गये है|हम भारतीयों के लिए यह हर्ष का विषय है| डिजिटल इण्डिया बनाने के लिए बहुत ही बढ़ चढ़ कर बातें की जा रही है और होनी भी चाहिए|लेकिन आज जब देश की एक बहुत बडी जनसँख्या ठीक से मोबाईल नही चला सकती तो कम्पूटर कैसे चलाएगी? आधी अधूरी तैयारियों के साथ डिजिटल दौर देश की एक बडी आबादी पर भारी पड़ने जा रहा है | उसी आधी अधूरी तैयारियों में आनलाईन परीक्षाये है | जिसमे बडी ही आसानी से कम्पूटर विशेषज्ञों द्वारा प्रतियोगी छात्र छात्राओ के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा सकता है| जब तक आनलाईन सिस्टम फुलप्रूफ न हो जाय तब तक आनलाईन प्रतियोगी परीक्षाये और ईवीएम उचित नही है| ग्रामीण लोग ईवीएम पर और ग्रामीण परिवेश से निकल कर बाहर आया प्रतियोगी छात्र कम्पूटर पर सहज नही हो पाते है | यह प्रतियोगी छात्रो के भविष्य के साथ खिलवाड़ है और यह संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों के भी खिलाफ है| आनलाईन परीक्षाये भेदभावपूर्ण है |

आनलाइन परीक्षा कई दिनों में होती है प्रत्येक दिन का विषय वस्तु अलग-अलग होता है तो जिस टैलेंट का मापन करने के लिए टेस्ट बनाया जाता है उस टैलेंट में एकरुपता नहीं आ सकती बल्कि टैलेंट के स्तर में विभिन्नता आ जाती है मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एक दिन के टेस्ट का सब्जेक्ट कुछ और दूसरे दिन कुछ और तीसरे दिन कुछ और चौथे दिन कुछ और—— आदि लेकिन आफलाइन परीक्षा में विषय वस्तु एक ही रहता है विषय वस्तु का क्रम बदल दिया जाता है जिससे एक दिन में आयोजित होने वाली आफलाइन प्रतियोगिता परीक्षा में जिस टैलेंट का मापन करने हेतु टेस्ट लिया जाता है उस टैलेंट का एक रुपीय मापन करता है जबकि आनलाइन प्रतियोगिता कई दिनों में आयोजित होती है प्रत्येक दिन का विषय वस्तु अलग-अलग होता है और जिस प्रतियोगिता परीक्षा के लिए टेस्ट लिया जाता है वह कभी भी उस टैलेंट का एक रूपीय मापन नहीं कर सकता वह विभिन्न रुपीय मापन करता है जो मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्णतया गलत और दोषपूर्ण है जिसके द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्र छात्राओं के साथ बड़ी आसानी से अन्याय कर दिया जाता है।

तकनीकी रुप से आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा पारदर्शी बिल्कुल नहीं है इसके साफ्टवेयर को हैकरों द्वारा आसानी से हैक कर अपने लोगों को आसानी से परीक्षा में उत्तीर्ण कराया जा सकता है| प्रतियोगी छात्रों को पता भी नहीं चलता है। उदाहरण- चाइना ने भारतीय बैंकों के एटीएम का साफ्टवेयर हैक किया और अपने देश के नागरिकों के एटीएम पर भारतीयों का पिन एलाट कर दिया तब चाइनीज अपने एटीएम से अपनी करेंसी निकाल रहे थे और भारतीयों के खाते से बैलेंस कट रहा था। अतः आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा में साफ्टवेयर हैकिंग कर आसानी से प्रभावित किया जा सकता है इसका जीता जागता उदाहरण उत्तर प्रदेश की सब इंस्पेक्टर परीक्षा एवं कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित होने वाली सीजीएल परीक्षा में हैकरों ने आसानी से घुसपैठ कर ली|

आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा में प्रतियोगी परीक्षार्थीयों की अनारक्षित (सवर्ण)/आरक्षित(पिछड़ा दलित आदिवासी) श्रेणी का पता परीक्षा कराने वाली एजेंसी को होता है इसी के अनुसार प्रश्न पत्र दिया जाता है तो आनलाइन परीक्षा कराने वाली एजेंसियां भी विषय वस्तु एक ही रहता है लेकिन प्रश्नों के क्रम भी पिछड़ा दलित आदिवासी को कठिन प्रश्न पहले और आसान प्रश्न बाद में तथा सवर्ण जाति को आसान प्रश्न पहले और कठिन प्रश्न बाद में परीक्षा कराने वाली एजेंसियां आसानी से कर देती है और आरक्षित वर्ग के परीक्षार्थियों के साथ ऐसा अन्याय करती है इसका पता किसी को भी नहीं चल सकता । इसके बाद दूसरा तरीका आरक्षित वर्ग के छात्र-छात्राओं को रोकने के लिए नारमलाइजेशन का लगाया जाता है जिस दिन आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा में पिछड़ा दलित आदिवासी समाज के छात्र छात्राओं की संख्या 95%होती है उस दिन नारमलाइजेशन का प्रयोग नहीं किया जाता है लेकिन जिस दिन सवर्ण जातियों के छात्रो छात्राओं की संख्या 95%होती है उस दिन नारमलाइजेशन का प्रयोग किया जाता है और सीधे तौर पर उनको प्राप्त अंकों में छूट देकर प्रतियोगिता परीक्षा में उत्तीर्ण कर दिया जाता है।
आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण एवं तकनीकी विश्लेषण के आधार पर पता चलता है कि आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा प्रयोग इस लिए लाया गया है कि आरक्षित (पिछड़ा दलित आदिवासी) वर्ग के छात्र को अनारक्षित वर्ग (जो सवर्ण जातियों के लिए आरक्षित हैं) की मेरिट में जाने से रोकने के लिए लाई गई परीक्षा प्रणाली है| समय रहते विरोध नही किया गया तो पिछड़ा दलित आदिवासी अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र छात्राओं के लिए इसका परिणाम बहुत ही घातक होने वाला है|

जैसे भारतीय संविधान में जनता का मतदान करने का माध्यम बैलेट पेपर था लेकिन डिजिटल इंडिया के नाम ईवीएम लाया गया । ईवीएम द्वारा मत की चोरी का आरोप 8 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट में सिद्ध हुआ तो 2014 में वीवीपैट नहीं लाई गई | जब 2019 में लाई गई तो शत प्रतिशत वीवीपैट की पर्ची से ईवीएम का मिलान नही कराया गया, यदि वीवीपैट क्यों लाई गई गई तो 100% मिलान से निर्वाचन आयोग क्यों भाग खड़ा हुआ ? भारत में चुनाव को चुनाव ना कराकर सिर्फ खानापूर्ति करना ही लोकतंत्र है तो यह बहुत बड़ी साजिश है | इसका पर्दाफाश नहीं किया गया तो भारत बड़ी आसानी से मुस्लिम शासन और अंग्रेजी शासन के बीच के दौर में पहुंच सकता है| अतः डिजिटल इंडिया भारत में पिछड़े दलित आदिवासियों को मिले संवैधानिक अधिकार को समाप्त करने का डिजिटल मेथड है जिसको समझकर पिछड़े दलित आदिवासी सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रांति के द्वारा नहीं हटाया तो भारतीय संविधान समाप्त कर मनु का संविधान मनुस्लामृति लागू होने में देर नहीं लगेगी| आनलाइन प्रतियोगिता परीक्षा के खिलाफ पिछड़ा दलित आदिवासी अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र छात्राओं को मुखर होना चाहिए|

(लेखक के अपने विचार है)

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